मथुरा से 26 किलोमीटर दूर स्थित है वही गोवर्धन पर्वत जिसे द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दाहिने हाथ को छोटी अंगुली भर से उठा लिया था और सात दिनों तक उसे उठा कर रखा था. आज भी मथुरा में दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है और इस पर्वत की परिक्रमा का भी बड़ा महत्त्व है.
परिक्रमा के लिए रास्ता भी बनाया गया है, पूरा भारत पहुंचे ये मुमकिन नही इसलिए बाकि के देशवासी अपने घरो के आगे गाय के गोबर का पर्वत बना पूजा करते है और उसी की परिक्रमा करते है. वैज्ञानिको की माने तो ये पर्वत जमीं पर टिके होने के बावजूद भी जाँच पर जमीं से चिपका नही पाया गया है
जिस जगह पर त्रेतायुग में रावण जटायु युद्ध हुआ और राम को जटायु मरणासन अवस्था में मिला वो जगह भी मिल गई है, साऊथ के लेपाक्षी टेम्पल का नाम अपने सुना होगा. जो की हैंगिंग टेम्पल के नाम से भी मशहूर है, इसी स्थान पर राम और जटायु की मुलाकात हुई थी.
इस स्थान पर श्रीराम के चरण के भी निशान बने हुए है जो की पता लगाने पर उतने ही पुराने है जितनी की भारतीय पुराणो के अनुसार रामायण की वो घटना. लाखों वर्षो पहले के वो निशान आज भी सुरक्षित है.
राजधानी रांची से पास ही डेढ़ सौ किमी दूर जंगलों के बीच एक स्थान है टांगी, जो की नक्सली एरिया है। सीता स्वयंवर में शिव धनुष पे हुए ड्रामे के बाद परशुराम यही तपस्थ हो गए थे, यहाँ आज भी उनका फरसा ज़मीं मे धंसा हुआ है। यहाँ पर गड़े लोहे के फरसे कि एक विशेषता यह है कि हज़ारों सालों से खुले मे रहने के बावजूद इस फरसे पर ज़ंग नही लगी है, ये जमीन मे कितना नीचे तक धंसा है इसकी कोइ जानकारी नही है, पर पौराणिक अनुमान है की ये सत्रह फ़ीट का है। बिहार में फरसे को टंगी कहते है इसलिए इस जगह को टांगी धाम कहा जाता है.
राजस्थान में पाली और राजसमन्द जिले के बॉर्डर पर अरावली की सुरम्य पहाड़ियों में है, जिसे परशुराम ने अपने फरसे से चट्टान को काटकर तैयार किया था, यहां से सौ किलो मीटर दूर पर परशुराम के पिता महर्षि जमदगनी की तपोभूमि है।
पांडव जब वनवास में थे तो उनका वो समय नार्थईस्ट के प्रदेशो में ही गुजरा था, वंही भीम का विवाह हिडिम्बा से हुआ और उससे घटोत्कच पैदा हुआ. भीम और घटोत्कच अक्सर शतरंज खेल करते थे जिसका सबूत आज भी नागालैंड के दिमापुर में मौजूद है गोटियों के रूप में. पांडव जब वंहा से चले तो घटोत्कच को छोड़ गए और याद करते ही आने का आश्वासन लेके चल दिए थे.
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