November 2015

वृंदावन. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को वृंदावन क्षेत्र में चंद्रोदय मंदिर के गर्भगृह का शि‍लान्‍यास कि‍या। यह जमीन से करीब 15 मीटर ऊंचा है। यह मंदि‍र कुतुबमीनार से तीन गुना ऊंचा बनेगा। इसके नि‍र्माण की शुरुआत जन्‍माष्‍टमी के दिन की गई थी। कुतुबमीनार की ऊंचाई 72.5 मीटर है जबकि तय योजना के मुताबिक मंदि‍र की ऊंचाई 210 मीटर होगी। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद यह दुनिया में भगवान कृष्‍ण का सबसे ऊंचा मंदिर होगा। यहां की चोटी से आगरा स्थित ताजमहल का दीदार भी किया जा सकेगा।  
 
बीते जन्‍माष्‍टमी को छटीकारा रोड स्थित अक्षय पात्र परिसर से स्‍थल पर ब्रज के संत शरणानंद और मथुरा की सांसद हेमा मालिनी की मौजदूगी में इसका नि‍र्माण कार्य शुरू हुआ था। इसके निर्माण के लिए सतह से नीचे खुदाई करके 1.2 मीटर व्‍यास के करीब 60 मीटर (20 मंजिला इमारत के बराबर) गहरे 500 पिलर बनाए जाएंगे। 
 
उस मौके पर संत शरणानंद ने कहा था कि इसमें इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री, वास्तु शिल्प से लेकर हर चीज इतनी अनूठी बनाई जाए कि दुनिया के बड़े-बड़े विशेषज्ञों को भी यह चमत्कृत कर दे। सांसद हेमा मालिनी ने कहा था कि दुनियाभर के इस्कॉन मंदिरों में विग्रहों का श्रृंगार उन्हें सदा ही आकर्षित करता है। उन्‍होंने मंदिर प्रबंधकों से कार पार्किंग के लिए विशेष व्‍यवस्‍था की बात कही थी।


क्या है मंदिर की परिकल्पना
 
वृंदावन में यूं तो सात हजार के आसपास मंदिर हैं, लेकिन चंद्रोदय की परिकल्पना थोड़ी अलग है। इसकी परिकल्पना साल1975 में श्रील प्रभुपाद द्वारा वृंदावन के प्राचीन राधादामोदर मंदिर में की गई थी। अब 39 वर्ष के बाद यह अक्षयपात्र में साकार होने जा रही है। जानकारों की मानें तो चैतन्य महाप्रभु ने आज से पांच सौ वर्ष पहले वृंदावन को खोजा था। 
 
इसके बाद श्रील प्रभुपाद ने महामंत्र हरेकृष्ण-हरेकृष्ण के जरिए देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी कृष्ण भक्ति को पहुंचाया। उन्हीं की परिकल्पना थी कि प्रभु कृष्ण के लीला धाम वृंदावन में एक ऐसे मंदिर का निर्माण होना चाहिए जो कि स्काईस्क्रैपर (गगनचुंभी) हो। उन्होंने मंदिर बनाने की कल्पना को वृंदावन में घूमते समय प्राचीन राधा दामोदर मंदिर में उजागर किया था। 
 
वृंदावन की तर्ज पर विकसित होगा चंद्रोदय मंदिर
 
इस मंदिर के निर्माण में विदेशी आर्किटेक्चर के साथ-साथ डिज्नी लैंड की मॉडर्न तकनीक प्रयोग की गई है। इसकी भव्यता बढ़ाने के लिए चारों ओर की पांच एकड़ जमीन में ऐसा वन बनाया जाएगा जो बृजभूमि के ही समान होगा। यहां दूर-दूर से आने वाले भक्त राधा-कृष्ण के समय के 12 वन, उपवन, यमुना नदी और सभी लोकों समेत वेद परंपराओं का अद्भुत दर्शन कर सकेंगे। इसके मुख्‍य हिस्‍से में हॉल, कृष्णा हेरिटेज म्यूजियम, वाचनालय और कृष्ण लीला पार्क का वि‍कास कि‍या जाएगा। यहां डिज्‍नीलैंड की तर्ज पर आधुनिक तकनीक से एनीमेशन के जरिए कृष्ण लीलाओं का दर्शन होगा। सबसे ऊपर गौलोक होगा।




 
70 मंजिला और 213 मीटर ऊंचे साढ़े पांच एकड़ में फैला यह मंदिर सिर्फ हाईटेक नहीं होगा बल्कि इसमें नागर शैली भी दिखेगी। इसमें श्रीमद भागवत और गीता में दिए जीवन तत्वों के साथ प्रकृति संरचना को भी दर्शाया जाएगा। इसमें पृथ्‍वी लोक, स्वर्गलोक, बैकुण्ठ लोक, गौलोक वि‍कसि‍त कि‍ए जाएंगे। मंदिर की चोटी पर पहुंचने के लिए कैप्सूल लिफ्ट लगाई जाएगी। इस लिफ्ट से यहां के सभी लोकों के दर्शन करने के साथ ही पूरे वृंदावन को भी देखा जा सकेगा। इसकी चोटी पर एक टेलिस्कोप भी स्थापित की जाएगी जहां से ताजमहल को देखा जा सकेगा। यहां गौर निताई, श्रील प्रभुपाद और राधाकृष्ण के श्रीविग्रह विराजमान किए जाएंगे।
 
कैसी होगी कॉलोनी
 
इनफिनिटी ट्रस्ट चंद्रोदय मंदिर के ही पास में एक कॉलोनी का निर्माण करने की योजना बना रहा है। यह आगामी तीन से चार साल में बनकर तैयार हो जाएगी। ट्रस्ट के अध्यक्ष चंचलापतिदास ने बताया कि इस मंदिर से जुड़े 40 एकड़ क्षेत्र का विकास होगा। यहां आधुनिक सुविधाओं और सुरक्षा व्यवस्था से परिपूर्ण आवास बनाए जा रहे हैं। पहले फेज में सात सौ फ्लैटों का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा 150 विलाज भी बनेंगे। इनके पास ही प्रभु कृष्ण के धाम में 12 वन बनाए जाएंगे, जो कि 25 एकड़ में फैले होंगे। यह वन पुराने वृंदावन की याद को ताजा करेंगे। 

The speciality of these Shiva statues is that they are tallest, biggest and largest statues so far and have even created records. Some are ancient while some are newly built. They are now a tourist attraction and must see destinations for travellers. Take a look at the 5 tallest statues of shiva. The shiva temples always have bigger gopurams (monumental tower) like Bruhadeshwara temple, Murudeshwara, Virupaksha, Rameshwaram, Nanjundeshwara and the list goes on. Though the temples are bruhat (biggest) the diety is small and is in the lingam form. According to mythology, Shiva is worshiped in the form of a lingam but the tallest statues of shiva that we are referring are not lingams but statues that look magnificient from any corner of the temple. Take a look at the list. Top 5 Tallest Shiva Statues Across World At No:1: Kailashnath Mahadev




 – Ever since the 'The Immortals Of Meluha" became famous, the devotees of Shiva are thronging to take a glimpse of the Kailashnath Mahadev in Nepal. This is the tallest structure of the lord in standing pose. It is about 43.5 metres (143 ft). The colour of the statue is copper and the face is serene, pleasant and welcoming to the believers and travellers. The statue is located in Kathmandu, the capital city of Nepal. 2. Shiva Of Murudeshwara 



– The famous Shiva temple not only has the biggest monumental tower but also the statue. Shiva, here, is silver coloured and seated. His eyes are open and pleasant. The ornaments and jewels are gold coloured. The statue is situated in the Uttara Kannada district of Karnataka (south India) and is about 37m (122 ft).
 3. Mangal MahadevMahadev




 – The 33m tall statue is a must see for Shiva followers. Although the lord is always seen in the backdrop of himalayas, this statue is very unique. It stands tall in the hottest beach destination, Mauritius. The Ganga Talao lake in Mauritius look fabulous because of Shiva. 

4. Shiva Of The Har-ki-Pauri

 – Situated in the highly sacred place of the Hindus (Haridwar), this statue is as high as 30.5 m. At the banks of Ganges, Shiva blesses devotees and those who are keen on doing badri yatra, take a glimpse of Shiva and continue their journey to Badri. 


5. Shiva At Kemp Fort


 – Bangalore is not only famous of tall buildings but is also for the Shiva statue. The famous kemp fort shiva is the tallest and top 5 across world. Shiva is in the yoga pose and is too crowded on shivaratri. The gigantic structure is 20m.

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भगवान शिव ने देवी पार्वती को समय-समय पर कई ज्ञान की बातें बताई हैं। जिनमें मनुष्य के सामाजिक जीवन से लेकर पारिवारिक और वैवाहिक जीवन की बातें शामिल हैं। भगवान शिव ने देवी पार्वती को 5 ऐसी बातें बताई थीं जो हर मनुष्य के लिए उपयोगी हैं, जिन्हें जानकर उनका पालन हर किसी को करना ही चाहिए-


1. क्या है सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ा पाप
देवी पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा धर्म और अधर्म मानी जाने वाली बात के बारे में बताया है। भगवान शंकर कहते है-
श्लोक- नास्ति सत्यात् परो नानृतात् पातकं परम्।।
अर्थात- मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या उसका साथ देना।
इसलिए हर किसी को अपने मन, अपनी बातें और अपने कामों से हमेशा उन्हीं को शामिल करना चाहिए, जिनमें सच्चाई हो, क्योंकि इससे बड़ा कोई धर्म है ही नहीं। असत्य कहना या किसी भी तरह से झूठ का साथ देना मनुष्य की बर्बादी का कारण बन सकता है।
2. काम करने के साथ इस एक और बात का रखें ध्यान
श्लोक- आत्मसाक्षी भवेन्नित्यमात्मनुस्तु शुभाशुभे।
अर्थात- मनुष्य को अपने हर काम का साक्षी यानी गवाह खुद ही बनना चाहिए, चाहे फिर वह अच्छा काम करे या बुरा। उसे कभी भी ये नहीं सोचना चाहिए कि उसके कर्मों को कोई नहीं देख रहा है।
कई लोगों के मन में गलत काम करते समय यही भाव मन में होता है कि उन्हें कोई नहीं देख रहा और इसी वजह से वे बिना किसी भी डर के पाप कर्म करते जाते हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और ही होती है। मनुष्य अपने सभी कर्मों का साक्षी खुद ही होता है। अगर मनुष्य हमेशा यह एक भाव मन में रखेगा तो वह कोई भी पाप कर्म करने से खुद ही खुद को रोक लेगा।
3. कभी न करें ये तीन काम करने की इच्छा
श्लोक-मनसा कर्मणा वाचा न च काड्क्षेत पातकम्।
अर्थात- आगे भगवान शिव कहते है कि- किसी भी मनुष्य को मन, वाणी और कर्मों से पाप करने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मनुष्य जैसा काम करता है, उसे वैसा फल भोगना ही पड़ता है।
यानि मनुष्य को अपने मन में ऐसी कोई बात नहीं आने देना चाहिए, जो धर्म-ग्रंथों के अनुसार पाप मानी जाए। न अपने मुंह से कोई ऐसी बात निकालनी चाहिए और न ही ऐसा कोई काम करना चाहिए, जिससे दूसरों को कोई परेशानी या दुख पहुंचे। पाप कर्म करने से मनुष्य को न सिर्फ जीवित होते हुए इसके परिणाम भोगना पड़ते हैं बल्कि मारने के बाद नरक में भी यातनाएं झेलना पड़ती हैं।
4. सफल होने के लिए ध्यान रखें ये एक बात
संसार में हर मनुष्य को किसी न किसी मनुष्य, वस्तु या परिस्थित से आसक्ति यानि लगाव होता ही है। लगाव और मोह का ऐसा जाल होता है, जिससे छूट पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इससे छुटकारा पाए बिना मनुष्य की सफलता मुमकिन नहीं होती, इसलिए भगवान शिव ने इससे बचने का एक उपाय बताया है।
श्लोक-दोषदर्शी भवेत्तत्र यत्र स्नेहः प्रवर्तते। अनिष्टेनान्वितं पश्चेद् यथा क्षिप्रं विरज्यते।।
अर्थात- भगवान शिव कहते हैं कि- मनुष्य को जिस भी व्यक्ति या परिस्थित से लगाव हो रहा हो, जो कि उसकी सफलता में रुकावट बन रही हो, मनुष्य को उसमें दोष ढूंढ़ना शुरू कर देना चाहिए। सोचना चाहिए कि यह कुछ पल का लगाव हमारी सफलता का बाधक बन रहा है। ऐसा करने से धीरे-धीरे मनुष्य लगाव और मोह के जाल से छूट जाएगा और अपने सभी कामों में सफलता पाने लगेगा।
5. यह एक बात समझ लेंगे तो नहीं करना पड़ेगा दुखों का सामना
श्लोक-नास्ति तृष्णासमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्।
सर्वान् कामान् परित्यज्य ब्रह्मभूयाय कल्पते।।
अर्थात- आगे भगवान शिव मनुष्यो को एक चेतावनी देते हुए कहते हैं कि- मनुष्य की तृष्णा यानि इच्छाओं से बड़ा कोई दुःख नहीं होता और इन्हें छोड़ देने से बड़ा कोई सुख नहीं है। मनुष्य का अपने मन पर वश नहीं होता। हर किसी के मन में कई अनावश्यक इच्छाएं होती हैं और यही इच्छाएं मनुष्य के दुःखों का कारण बनती हैं। जरुरी है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में अंतर समझे और फिर अनावश्यक इच्छाओं का त्याग करके शांत मन से जीवन बिताएं।





सत्व, रजस और तमस, माया के ये तीन गुण हर मनुष्य के दिमाग में अलग अलग लेवल में मौजूद होते हैं| सत्व वे गुण हैं जो धीरज, संयम, पवित्रता और मानसिक शांति को दर्शाते हैं| कामुकता और धन की लालसा ये रजस गुण हैं| सारी बुराइयां तमस के अंतर्गत आती हैं जैसे गुस्सा, क्रोध, घमंड और विनाशकारी सोच आदि| भगवान के प्रति ध्यान लगाने के लिए रजस और तमस गुणों का कम होना चाहिए ताकि सात्विक गुणों में वृद्धि हो सके|
monks
बहुत से खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ मानसिक स्थितियों को प्रभावित कर सकते हैं जिससे सत्व, रजस और तमस जैसे गुणों की मात्रा भी प्रभावित होती है| उदाहरण के तौर पर शराब का सेवन व्यक्ति की बर्दाश्त क्षमता को कम करता है और वासना जैसे राजसिक गुणों को बढ़ाता है। इसी तरह से प्याज, लहसुन, हींग आदि खाद्य पदार्थ गुस्से जैसे तामसिक गुणों को बढ़ाते हैं| भगवान के सच्चे भक्त को ऐसी किन्ही भी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए जो कि राजसिक और तामसिक गुणों को बढ़ाते हैं क्यों की ये भगवान की पूजा में अड़चन पैदा करते हैं| जब राजसिक और तामसिक गुणों में वृद्धि होगी तो मनुष्य का दिमाग शांत नहीं होगा| इसलिए इन स्थितियों में व्यक्ति भगवान में मन नहीं लगा सकता है| जब सत्व गुण की मात्रा बढ़ती है तो व्यक्ति मन से और ईमानदारी से भगवान की पूजा अर्चना करता है| इसलिए भगवान के भक्त को चाहिए कि उसका दिमाग राजसिक और तामसिक प्रकृतियों को दबा दे और सात्विकता की स्थिति को प्राप्त करे| इसलिए स्वाद (जिव्हा) को मिलाकर सारी इन्द्रियां मनुष्य के वश में और पवित्र हों ताकि दिमाग को भी पवित्र रखा जा सके| मन, कर्म और वचन की पवित्रता द्वारा ईश्वर को खुश किया जा सकता है|


मथुरा से 26 किलोमीटर दूर स्थित है वही गोवर्धन पर्वत जिसे द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दाहिने हाथ को छोटी अंगुली भर से उठा लिया था और सात दिनों तक उसे उठा कर रखा था. आज भी मथुरा में दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है और इस पर्वत की परिक्रमा का भी बड़ा महत्त्व है.
परिक्रमा के लिए रास्ता भी बनाया गया है, पूरा भारत पहुंचे ये मुमकिन नही इसलिए बाकि के देशवासी अपने घरो के आगे गाय के गोबर का पर्वत बना पूजा करते है और उसी की परिक्रमा करते है. वैज्ञानिको की माने तो ये पर्वत जमीं पर टिके होने के बावजूद भी जाँच पर जमीं से चिपका नही पाया गया है

जिस जगह पर त्रेतायुग में रावण जटायु युद्ध हुआ और राम को जटायु मरणासन अवस्था में मिला वो जगह भी मिल गई है, साऊथ के लेपाक्षी टेम्पल का नाम अपने सुना होगा. जो की हैंगिंग टेम्पल के नाम से भी मशहूर है, इसी स्थान पर राम और जटायु की मुलाकात हुई थी.
इस स्थान पर श्रीराम के चरण के भी निशान बने हुए है जो की पता लगाने पर उतने ही पुराने है जितनी की भारतीय पुराणो के अनुसार रामायण की वो घटना. लाखों वर्षो पहले के वो निशान आज भी सुरक्षित है.



राजधानी रांची से पास ही डेढ़ सौ किमी दूर जंगलों के बीच एक स्थान है टांगी, जो की नक्सली एरिया है। सीता स्वयंवर में शिव धनुष पे हुए ड्रामे के बाद परशुराम यही तपस्थ हो गए थे, यहाँ आज भी उनका फरसा ज़मीं मे धंसा हुआ है। यहाँ पर गड़े लोहे के फरसे कि एक विशेषता यह है कि हज़ारों सालों से खुले मे रहने के बावजूद इस फरसे पर ज़ंग नही लगी है, ये जमीन मे कितना नीचे तक धंसा है इसकी कोइ जानकारी नही है, पर पौराणिक अनुमान है की ये सत्रह फ़ीट का है। बिहार में फरसे को टंगी कहते है इसलिए इस जगह को टांगी धाम कहा जाता है.
राजस्थान में पाली और राजसमन्द जिले के बॉर्डर पर अरावली की सुरम्य पहाड़ियों में है, जिसे परशुराम ने अपने फरसे से चट्टान को काटकर तैयार किया था, यहां से सौ किलो मीटर  दूर पर परशुराम के पिता महर्षि जमदगनी की तपोभूमि है।



पांडव जब वनवास में थे तो उनका वो समय नार्थईस्ट के प्रदेशो में ही गुजरा था, वंही भीम का विवाह हिडिम्बा से हुआ और उससे घटोत्कच पैदा हुआ. भीम और घटोत्कच अक्सर शतरंज खेल करते थे जिसका सबूत आज भी नागालैंड के दिमापुर में मौजूद है गोटियों के रूप में. पांडव जब वंहा से चले तो घटोत्कच को छोड़ गए और याद करते ही आने का आश्वासन लेके चल दिए थे.


Karni Mata Temple

Location:At a distance of 30kms south of Bikaner
Built in:15th century
Dedicated to:Karni Mata
Also known as:Temple of Rats
Attraction:Thousands of Rats are worshipped
How to reach:One can easily reach Rat Temple by taking regular Buses or by hiring taxis from anywhere in Rajasthan

Karni Mata TempleKarni Mata Temple is a popular and unusual holy shrine of India. This Temple is in a small town of Deshnok, which is located at a distance of 30 kms in south of Bikaner in Rajasthan. Karni Mata Mandir is easily accessible by regular buses from Bikaner and Jodhpur. To ensure a comfortable journey, one can also opt for taxis that can be availed from anywhere in Rajasthan. The temple is dedicated to Goddess Karni, who is regarded as the incarnation of Maa Durga.

In the 14th century, Goddess Karni is said to have lived and performed many miracles during her existence. Karni Mata was a mystic, who led a virtuous life committed to the service of the poor and the oppressed of all communities. The goddess is said to have laid the foundation of Deshnoke. As per the stories, once when her youngest son drowned, Goddess Karni asked Yama (the god of death) to bring him back to life.

Lord Yama replied that he could not return her son's life. Thus, Karni Mata, being an incarnation of Goddess Durga, restored the life of her son. At this point of time, she announced that her family members would die no longer; in fact they would incarnate in the form of rats (kabas) and ultimately, these rats would come back as the members of her family. In Deshnok, there are around 600 families that assert to be the descendants of Karni Mata.

The present temple dates back to the 15th century, when it was built by Maharaja Ganga Singh of Bikaner. The striking façade of the temple is wholly built in marble. Inside the temple complex, one can see a pair of silver doors before the main shrine of the Goddess. These solid silver doors were donated by Maharaja Gaj Singh, on his visit to this temple.

In the main shrine, the image of the goddess is placed with holy things at her feet. Surrounded by rats, Karni Mata is holding a trishul (trident) in one of her hands. The image of Karni Mata is 75 cms tall, decked with a mukut (crown) and a garland of flowers. On her either side, images of her sisters are placed. Karni Mata Temple attracts numerous tourists and pilgrims throughout the year, due to its unique presiding beings.

The temple has around 20,000 rats that are fed, protected and worshipped. Many holes can be seen in the courtyard of this temple. In the vicinity of these holes, one can see rats engaged in different activities. The Rats can be seen here eating from huge metal bowls of milk, sweets and grains. To make the holy rats safe, wires and grills are sited over the courtyard to avoid the birds of prey and other animals.

It is regarded auspicious, if a rat (kaba) runs across one's feet. Even, a glimpse of kaba (white rat) is considered promising and fruitful. Twice a year, a festival is celebrated in the honor of Karni Mata. A grand fair is organized during this time and people come here to seek the blessings of the Goddess.

श्री स्तंभेश्वर महादेव




स्कंद पुराण में स्तंभेश्वरतीर्थ की बड़ी गाथा है । महिसागर संगम तीर्थ जैसी पवित्र पावन भूमि पर भगवान शंकर के परम पराक्रमी पुत्र कार्तिकेय स्वामी द्वारा स्थापित यह शिवलिंग-श्री स्तंभेश्वर महादेव के दर्षन मात्र से व्यक्ति सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है । उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है । यह स्तंभेश्वरतीर्थ गुजरात के भरुच जिला के जंबुसर तहसील में कावी-कंबोई समुद्र तट पर स्थित है । समुद्र दिन में दो बार श्री स्तंभेश्वर महादेव (शिवलिंग) पर स्वयं अभिषेक करता है । महिसागर संगम तीर्थ स्तंभेश्वर महादेव-कावी कंबोई पहुंचने के लिये वड़ोदरा से 53 किमी. बस, कार के द्वारा जंबुसर होकर पहुंच सकते हैं । जंबुसर से 30 किमी. दूरी पर यह स्थान है ।

History

one of the eighteen Hindu puranas, While the deities hailed the glory of Kartikeya for having killed Tarakasur, Kartikeya himself was saddened by his act. He told the deities--'I regret for having killed Tarakasur because he was a great devotee of Lord Shiva. Is there any way to atone for my sin?'Lord Vishnu consoled him---'Killing a wicked person, who nourishes himself on the blood of innocent people, is not a sinful deed. But, still, if you feel guilty then there is no better way to atone for your sin than worshipping Lord Shiva. Install Shivalingas and worship them with deep devotion.'
Kartikeya instructed Vishnukarma to make three divine Shivalingas. Later on Kartikeya installed these Shivalingas at three different places and worshipped them with appropriate rituals. In course of time these three holy places came to be known as Pratigyeshwar, Kapaleshwar and Kumareshwar.
Kartikeya, while worshipping at Kapaleshwar sprinkled holy water on the Shivalinga and prayed so that Tarakasur's soul rested in peace. He also offered sesame seeds to Lord Kapaleshwar and prayed --'May my offerings made in the form of sesame seeds reach Tarak--the descendant of Sage Kashyap.' This way, Kartikeya was absolved of his sins.



सूर्य नमस्कार सबसे जानें मानें योग अभ्यासों में से एक है। इसका प्रभाव पूरे शरीर पर महसूस किया जा सकता है। लेकिन क्या आध्यात्मिक साधना करने वालों के लिए भी ये फायदेमंद है? क्या यह मन और विचारों पर भी प्रभाव डाल सकता है?
सद्‌गुरु:- आम तौर पर सूर्य नमस्कार को कसरत माना जाता है जो आपकी पीठ, आपकी मांसपेशियों, वगैरह को मजबूत करता है। हां, वह यह सब और इसके अलावा भी बहुत कुछ करता है। यह शारीरिक तंत्र के लिए एक संपूर्ण अभ्यास है – व्यायाम का एक व्यापक रूप जिसके लिए किसी उपकरण की जरूरत नहीं होती। मगर सबसे बढ़कर यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो इंसान को अपने जीवन के बाध्यकारी चक्रों और स्वरूपों से आजाद होने में समर्थ बनाता है।
सूर्य नमस्कार : शरीर को एक सोपान बनानासूर्य नमस्कार का मतलब है, सुबह में सूर्य के आगे झुकना। सूर्य इस धरती के लिए जीवन का स्रोत है। आप जो कुछ खाते हैं, पीते हैं और सांस से अंदर लेते हैं, उसमें सूर्य का एक तत्व होता है। जब आप यह सीख लेते हैं कि सूर्य को बेहतर रूप में आत्मसात कैसे करना है, उसे ग्रहण करना और अपने शरीर का एक हिस्सा बनाना सीखते हैं, तभी आप इस प्रक्रिया से वाकई लाभ उठा सकते हैं।भौतिक शरीर उच्चतर संभावनाओं के लिए एक शानदार सोपान है मगर ज्यादातर लोगों के लिए यह एक रोड़े की तरह काम करता है। शरीर की बाध्यताएं उन्हें आध्यात्मिक पथ पर आगे नहीं जाने देतीं। सौर चक्र के साथ तालमेल में होने से संतुलन और ग्रहणशीलता मिलती है। यह शरीर को उस बिंदु तक ले जाने का एक माध्यम है, जहां वह कोई बाधा नहीं रह जाता।
सूर्य नमस्कार : सौर चक्र के साथ तालमेलयह शारीरिक तंत्र के लिए एक संपूर्ण अभ्यास है – व्यायाम का एक व्यापक रूप जिसके लिए किसी उपकरण की जरूरत नहीं होती।सूर्य नमस्कार का मकसद मुख्य रूप से आपके अंदर एक ऐसा आयाम निर्मित करना है जहां आपके भौतिक चक्र सूर्य के चक्रों के तालमेल में होते हैं। यह चक्र लगभग बारह साल और तीन महीने का होता है। यह कोई संयोग नहीं है, बल्कि जानबूझकर इसमें बारह मुद्राएं या बारह आसन बनाए गए हैं। अगर आपके तंत्र में सक्रियता और तैयारी का एक निश्चित स्तर है और वह ग्रहणशीलता की एक बेहतर अवस्था में है तो कुदरती तौर पर आपका चक्र सौर चक्र के तालमेल में होगा।युवा स्त्रियों को एक लाभ होता है कि वे चंद्र चक्रों के भी तालमेल में होती हैं। यह एक शानदार संभावना है कि आपका शरीर सौर और चंद्र दोनों चक्रों से जुड़ा हुआ है। कुदरत ने एक स्त्री को यह सुविधा दी है क्योंकि उसे मानव जाति को बढ़ाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसलिए, उसे कुछ अतिरिक्त सुविधाएं दी गई हैं। मगर बहुत से लोगों को यह पता नहीं होता कि उस संबंध से उत्पन्न अतिरिक्त ऊर्जा को कैसे संभालें, इसलिए वे इसे एक अभिशाप की तरह, बल्कि एक तरह का पागलपन मानते हैं।

‘लूनर’ (चंद्रमा संबंधी) से ‘लूनी’ (विक्षिप्त) बनना इसका प्रमाण है।चक्रीय से परे जाने के लिए चक्रों का इस्तेमालचंद्र चक्र, जो सबसे छोटा चक्र (28 दिन का चक्र) और सौर चक्र, जो बारह साल से अधिक का होता है, दोनों के बीच तमाम दूसरे तरह के चक्र होते हैं। चक्रीय या साइक्लिकल शब्द का अर्थ है दोहराव। दोहराव का मतलब है कि किसी रूप में वह विवशता पैदा करता है। विवशता का मतलब है कि वह चेतनता के लिए अनुकूल नहीं है। अगर आप बहुत बाध्य होंगे, तो आप देखेंगे कि स्थितियां, अनुभव, विचार और भावनाएं सभी आवर्ती होंगे यानि बार-बार आपके पास लौट कर आएंगे। छह या अठारह महीने, तीन साल या छह साल में वे एक बार आपके पास लौट कर आते हैं। अगर आप सिर्फ मुड़ कर देखें, तो आप इस पर ध्यान दे सकते हैं।अगर वे बारह साल से ज्यादा समय में एक बार लौटते हैं, तो इसका मतलब है कि आपका शरीर ग्रहणशीलता और संतुलन की अच्छी अवस्था में है। सूर्य नमस्कार एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो इसे संभव बनाती है।
साधना हमेशा चक्र को तोड़ने के लिए होती है ताकि आपके शरीर में और बाध्यता न हो और आपके पास चेतनता के लिए सही आधार हो।चक्रीय गति या तंत्रों की आवर्ती प्रकृति, जिसे हम पारंपरिक रूप से संसार के नाम से जानते हैं, जीवन के निर्माण के लिए जरूरी स्थिरता लाती है। अगर यह सब बेतरतीब होता, तो एक स्थिर जीवन का निर्माण संभव नहीं होता। इसलिए सौर चक्र और व्यक्ति के लिए चक्रीय प्रकृति में जमे रहना जीवन की दृढ़ता और स्थिरता है। मगर एक बार जब जीवन विकास के उस स्तर पर पहुंच जाता है, जहां इंसान पहुंच चुका है, तो सिर्फ स्थिरता नहीं, बल्कि परे जाने की इच्छा स्वाभाविक रूप से पैदा होती है। अब यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह या तो चक्रीय प्रकृति में फंसा रहे जो स्थिर भौतिक अस्तित्व का आधार है, या इन चक्रों को भौतिक कल्याण के लिए इस्तेमाल करे और उन पर सवार होकर चक्रीय से परे चला जाए।

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